शिरोमणि कमेटी द्वारा मान सरकार के ‘पवित्र गुरबाणी’ को एक चैनल के एकाधिकार से मुक्त करने के निर्णय का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण – मलविंदर सिंह कंग

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने धारा 125 में संशोधन करके दुनिया के हर कोने में पवित्र गुरबाणी को बिल्कुल मुफ्त पहुंचाने का जो फैसला किया था, उसे आज शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की विशेष बैठक में खारिज कर दिया गया। ऐसा सिर्फ एक परिवार की राजनीति को बचाने के लिए किया गया है। जबकि आज शिरोमणि कमेटी के पास सिखों की भावनाओं को दर्शाने  वाली इस महान संस्था को बादल परिवार की गुलामी से मुक्त कराने का अवसर था। उक्त बातें ‘आप’ पंजाब के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कंग ने चंडीगढ़ पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही।

मलविंदर कंग ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा मुफ्त गुरबाणी प्रसारित करने के फैसले को अस्वीकार करने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी से पूछा कि क्या उन्हें एक पार्टी और एक परिवार के राजनीतिक हित के लिए गुरबाणी के प्रसारण अधिकारों को एक निजी चैनल तक सीमित करना चाहिए ताकि वह विज्ञापन टीआरपी आदि के माध्यम से करोड़ों का व्यवसाय कर सके?

शिरोमणि कमेटी अध्यक्ष द्वारा मान सरकार को सिख विरोधी कहने पर कंग ने कहा कि क्या वे नहीं जानते कि भगवंत मान को पंजाब के सिखों ने भी चुना है। क्या अकाली दल के तीन निर्वाचित विधायक ही सिर्फ सिखों का प्रतिनिधित्व करते हैं? तो विधानसभा के बाकी विधायक कहां के हैं?

कंग ने सवाल करते हुए कहा कि एसजीपीसी अध्यक्ष को बताना चाहिए कि आज वह गुरबाणी प्रसारण के मुद्दे को पंथ पर हमला बता रहे हैं और विशेष बैठक बुला रहे हैं, लेकिन एसजीपीसी ने तब कोई विशेष बैठक क्यों नहीं बुलाई थी जब बरगाड़ी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी की गई थी और उसके न्याय की मांग कर रही संगत पर अकाली-भाजपा सरकार के इशारे पर गोलियां चलाई गई थी? क्या वह पंथ पर हमला नहीं था?

कंग ने कहा कि भाजपा ने दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर कब्जा कर लिया। हरियाणा में अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बना दी गई उस पर शिरोमणि कमेटी ने कोई विरोध नहीं किया, लेकिन जब बादलों के चैनल पर खतरा मंडराने लगा तो धामी इसे राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में पेश कर रहे हैं।

कंग ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जो कुछ भी किया वह देश-दुनिया में रहने वाली नानक नाम-लेवा संगतों की भावनाओं के अनुरूप किया। लेकिन जो लोग खुद को सिखों का प्रतिनिधि कहते हैं उन्हें भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए और बलिदानों के गौरवशाली इतिहास से भरी शिरोमणि कमेटी को एक परिवार की राजनीति तक सीमित नहीं रखना चाहिए।

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