केंद्र ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का बचाव करते हुए कहा कि विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पीठ को बताया कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019, ने केंद्र द्वारा परिसीमन आयोग की स्थापना को नहीं रोका जा सकता है।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस ओका भी शामिल थे, ने श्रीनगर निवासी हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
याचिकाकर्ताओं ने परिसीमन आयोग द्वारा अनुशंसित जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में 24 सीटों को छोड़कर, 83 से 90 तक सीटों की संख्या में वृद्धि पर सवाल उठाया है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई ने की थी।
उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और 332 और वैधानिक प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के खिलाफ है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि विधानसभा में सीटों की संख्या नहीं बढ़ाई जा सकती थी। वरिष्ठ अधिवक्ता रवि शंकर जंध्याला ने बुधवार को खंडपीठ को बताया, “चुनाव आयोग अपने अधिकार का त्याग नहीं कर सकता है और इसे परिसीमन आयोग को दे सकता है।”